Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) २८१
३२. ।पंडित। पैड़े ने प्राण संगली लिआणदी॥
३१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>३३
दोहरा: पैड़ा मोखा सिख हुतो, श्री सतिगुर के पास।
सवे निस दिन गुरनि को, सिज़खी रिदै प्रकाश ॥१॥
चौपई: पंडित काशी ते इक आवा।
श्री अरजन सो पास टिकावा।करहि कामना बिज़प्र बिसाला।
-करौण सुनावनि कथा रसाला ॥२॥
पाछे दछना लेवौण मोख।
दै हैण गान रु सत संतोख-।
दिज मन की सगरी गुर जानी।
राखोण निकट रहो सुख मानी ॥३॥
केतिक मास बिते जबि पासा।
तिसी मनोरथ की धरि आसा।
पुन श्री गुर कहि कथा अलावहु।
बेदनि की अुपनिशध१ सुनावहु ॥४॥
दिज सुनि हरखो लागो करने।
ब्रहम रूप को जिस महि निरने।
कथा होति नित नेम धराई२।
इक दिन आयो सालो भाई ॥५॥
अनन३ होइ गुर पग लपटाना।
अति आदर तिह श्री गुर ठाना।
सालो है मुझ परम पिआरा।
अनन भगत गुर मुखोण अुचारा ॥६॥
सुनि अनन बच गुर ते पंडित।
-हमहि अननता कोण नहि मंडत४।
वेद सिधांत कथा जु सुनावैण।
हम को नहि अनन मुख* गावैण- ॥७॥
१गिआन दे पुसतक हन।
२नेम करके भाव, रोग़।
३केवल गुरू पराइं।
४साळ अननपणे (दे पद) नाल किअुण नहीण शशोभित करदे?
*पा:-हम अनन सिज़खनिगुन।