Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) २९०

३७. ।चमकौर गड़्ही विचोण निकल निकल के सिंघां दा जूझंां॥
३६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>३८
दोहरा: पौर ठौर को आवईण,
दौरि दौरि अरि बीर।
कोठा सिंघ गुलकाण हते,
मदन सिंघ धरि धरि ॥१॥
नराज छंदु: दुहूंन ताकि ताकि कै, तुफंग ठोकिगोरीआण।
अरी हग़ार ओरड़े समूह सौणह१ छोरीआण।
लगी कितेक अंग महि, निसंग होइ भाखिओ।
प्रभू निदेस दीजीये, विशेश हीय काणखिओ ॥२॥
पधारि पौर बाहरे, सु दौर जंग घालि हैण।
क्रिपान काढ मान ते, निदान शज़त्र डाल हैण।
हसे क्रिपाल दे खुशी, कहो दिखाइ हाथ को।
प्रवेश पुंज सैन बीच, काटि काटि माथ को२ ॥३॥
गुरू बखान श्रेय कै, पयान३ दौन सूरमे।
किवार खोलि पौर केर, दौरि दौरि दूर मे।
दिखाइबे क्रिपाल को, बिसाल जंग घालिओ।
बचाइ वार ढाल महि, अरीन मारि डालिओ ॥४॥
प्रभू बिसाल ओज दीन४, धाइ ओर जाहि की।
क्रिपान श्रों देखि भीरु, धीर नाश तांहि की५।
सके ना झाल सामुहे, मतंग हेरि शेर को।
कटंति अंग शज़त्र के, करंति धाइ नेर को ॥५॥
बिलोकि दुशट पुशट जे*, अनिशट जान आपने।
हग़ारहूं तुफंग छोरि, सिंघ ओर खापने६।
लगी पचीस तीस अंग, अंग फोर दीनिओण।
गुरू गुरू भनति, देव लोक जानि कीनिओ ॥६॥

१साहमणिओण।२सिराण ळ।
३कहिंां सुणके टुर पए।
४लहू दी भरी क्रिपान देखके तदोण (अुहनां) काइराण दा धीरज नाश हो गिआ जिन्हां वज़ल ओह (सिज़ख)
दौड़े।
५आपणे दुखदाई जाणके।
*पा:-को।
६मार देण लई सिंघां वल तुफंगां छज़डीआण।

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