Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १)३००

सुत सनेह बिरधा महां, सुनि बाक सत्रासा१।
करुनानिधि बिगसे बहुत, कहिण दे भरवासा२।
तोहि पुज़त्र को भै नहीण, गन भूत जु प्रेता।
डाकनि बपुरी का करैण, बड भा बल एता३ ॥१३॥
बीर बवंजा जोगनी, इस आइसु मानैण।
सरब सुरासुर४ जित किती, डर धरैण महानै।
महां शकति इस मैण भई, नहिण कीजहि त्रासा।
गई सदन को दीन बनि, कुछ करि भरवाशा ॥१४॥
सावंमज़ल हकारि पुन, निज निकट बिठावा।
इक रुमाल कर पौणछनो५, गुर हाथ अुठावा।
दयो तिसहि समझाइ करि, इस अग़मति भारी।
चहहिण जि किसहि संघार दिहु, चहिण म्रितक जिवारी६ ॥१५॥
जिस की चित महिण चाहि हुइ, इस महिण ते लीजै।
सरब सुरासुर आदरैण७, चाहि सु कहि दीजै।
थाती अग़मति की८ इही, निहसंसै मानो।
करहु देश सिज़ख आपनो, पुन काज बखानो ॥१६॥
बपुरे कहां पहारीए, आइसु नहिण मानैण।
तीन लोक पर हुकम तुव, नहिण फेरन ठांनै।
ले रुमाल हरखो रिदै, कर जोर बखानी।
प्रभु जी! सभि कारज सनै, अग़मत ले मानी९ ॥१७॥
लेरुमाल सिर पर धरो, खुलि गए कपाटा।
सभि सिज़धां आगे खरी, हेरो बड ठाटा१०।
बंदन करि गमनो सदन, मातादि कुटंबा।


१डर वाले।
२धिरवास देके किहा।
३(इस विच) इतना वज़डा बल होइआ है।
४देवते ते दैणत।
५हथ साफ करन वाला।
६जे चाहेण कि किसे ळ मार देवेण (तां मर जाएगा) जो चाहेण मरे होए ळ जिवालां (तां जी पएगा)।
७आदर करनगे।
८करामात दी थैली।
९(पहाड़ीए) अग़मत लै के मंन जाणगे, भाव पतीज जाणगे। (अ) सावंमज़ल अग़मत लै के पतीज
गिआ ते कहिं लगा: हे प्रभु जी! हुण सारा कंम बण जाएगा।
१०ठाठ, बणाअु।

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