Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २९७३१. ।नद चंद श्री गुरू ग्रंथ जी लै के नसिआ॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>३२
दोहरा: नद चंद की बारता,
सुनीअहि भयो बिनास।
राखे भी सो ना रहे,
भावी भई प्रकाश१ ॥१॥
चौपई: हुते अुदासी साध सुजाना।
लिखो ग्रंथ साहिब निज पाना।
पूरन करि अनदपुरि आए।
इक तौ दरशन चाअु ब्रिधाए ॥२॥
दुतीए अज़खर सतिगुर कर के।
लिखवैहैण ढिग बिनती करिके।
नद चंद को मिले सु आइ।
निज कारज को दयो सुनाइ ॥३॥
लिखो ग्रंथ साहिब हम आछे।
दसखत प्रभु के इस महि बाणछे।
हम ते कहो जाइ किम नांही।
तुम कहीअहि रहतै नित पाही ॥४॥
नद चंद सो ग्रंथ मंगायो।
सुंदर लिखत देख बिरमायो।
आप रखनि को इज़छा ठानी।
साधनि संग भनी पुन बानी ॥५॥
बैठहु तुम निचिंत पुरि बासो।
जबि गुर ढिग देखहु अविकाशो।
बिनै भनहु मैण दिअुण लिखवाइ।
देर लगहि कारज हुइ जाइ ॥६॥
इम सुनि साध गं्रथ तिस दीनि।-दसखत करिवै है-, चित चीन।
बीतो मास साध नित आवै।
निज कारज सिमरनि करिवावै ॥७॥
फोके बाक तिनहु संग कहै।
१जो मसंद बचा के रज़खे पर तां बी ना बचे रहे भावी ऐसी होई।