Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३२६
३५. ।पाहुल भेद। देवी। दुशट दमन॥
३४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>३६
दोहरा: +सिज़खी पंच प्रकार की, सुनि पाहुल बखशीश१।
सिख सिदकी करि जोरि कै, धरि पग पंकज सीस ॥१॥
चौपई: बूझति भए सरब करि पंगत।
गुर पतिशाहु आप की संगति।
अभिलाखति सगरे मन जाननि।
श्रवन करनि को तुमरे आननि२ ॥२॥
पाहुल के गुण भेद बखानो३।
जिम रावर ने कीन महानो।
भाव सहित कलीधर सुनो।
करि बज़खात भेद सभि भनो ॥३॥
मंत्र सु जंत्र तंत्र इहु तीन।कारज के सिध करता चीन।
सज़तिनाम मंत्रनि सिरमौर।
जिस के सम जग महि नहि और ॥४॥
वाहिगुरू इहु मंत्र* महाना।
चतुर वरन को जोड़नि ठाना।
लोह शसत्र अरु जलु मिशटाना।
इही तंत्र करता सवधाना४ ॥५॥
दई वसतु इहु देवनि५ लाइ।
तिन के नाम सुनहु चित लाइ।
बरुन आपणे कर जल आना।
इंद्र महां बलि लिय मिशटाना ॥६॥
लोहा दीनि दीनि जमराज।
मिले देव पाहुल के काज।
+इह साखी सौ साखी दी १३वीण साखी है।
१पाहुल दी बखशश होई (देखके)।
२आपदे मुखोण।
३गुण ते वेरवे दज़सो।
*पा:-जंत्र।
४लोहे दा शसत्र (फेर के) जल ते मिज़ठे (विज़च फेरनां) इही तंत्र सावधान करन वाला।
५देवतिआण ने।