Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३४१
३७. ।भविज़खत वाक॥
३६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>३८
दोहरा: +बीतहि पंज हग़ार कलि तबि लगि संखा जानि१।
सुनि शुनाक सिंघ बारता बिदतहि सकल जहान२ ॥१॥
निशानी छंद: इतने बिखै सुभाअु म्रिदु, पिखि करि सभि आए।
सुनहु जथा सतिगुर कहहि, सगरे बिसमाए।
महाराज किम होइ है, जबि आइ फिरंगी?
पंथ तुमारा खालसा, किम हुइ सुख संगी?॥२॥
किम इन ठहिरहि राज तबि, जबि तिन दल आवै?
कैसे होइ ब्रितंत सभि? सुनि गुरू बतावैण।
मौनि फिरंगी३ आइ है, दल जोर घनेरे४।
सिंघ गुरिंड सु सैन बलि५, हुइ है बहु तेरे ॥३॥
महिपालक दुहि दिशिनि के, मिलि हैण तिस बारी।
हुवै बखेरा परसपर, ऐसे इज़छ धारी।
कबहु सबल मम खालसा, है निबल फिरंगी।
कबहु निबल मम पंथ है, से सबल कुदंगी६ ॥४॥
चौपई: रहै खालसा जबि लग नारो७।
तबि लगि तेज दियो मुहि सारो।
बंधे जाहि मोह की फास।
सुत बनितादिक बास अवास ॥५॥
गअूअनि हांकहि८ रिशवत लेई।
इज़तादिक करमनि बसि तेई।
धीअ भैं का पैसा खावैण।
+सौ साखी दी इह हुण १५वीण साखी चज़ली है।
१कलजुग दा पंज हग़ार वर्हा जद तक बीतेगा तद तक दी इह गिंती जानो।
२जो प्रगट होणी है सारे जहान विच।
३यूरप दे अंगरेग़। ।मौन तोण भाव अंग्रेग़ लैणदे हन॥।
४बहुत फौजाण जोड़के।
५गुराण दे सिंघां दी सैना बड़ी बली है ।गुरिंड = गुरूआण दे॥।
६खोटे ढंग वाले (फिरंगी)।
७(कुटंब आदि तोण) निआरारहेगा। (अ) (हिंदू तुरकाण तोण) निआरा रहेगा।
८भाव, शसत्र छज़डके गअूआण चारन लग पैंगे। सौ साखी दा पाठ है:-गाइन हांकत गुयकल धीए।
इस दा इअुण बी अरथ करदे हन, (गुयकल =) गुजर जिवेण गअूआण (पैसे लैके) हज़क देणदे हन
तिवेण (पैसा लैके) धीआण दे देणगे।