Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ३४१
३७. ।खालसा पद दे अरथ। भविज़खत वाक॥
३६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>३८
दोहरा: गए पहारी झूरते, चलो नहीण बसि कोइ।
सुभट मराए सैणकरे, जग महि अपजस होइ ॥१॥
चौपई: पुन इक थल हुइ मसलत कीनी।
भली लराई कोणहु न चीनी१।
भीमचंद सभि बिखै अुचारी।
मैण पूरब ही गिनती धारी ॥२॥
गुरू संग जंग नहि बनि आवै।
जिन ते जै कोणहु न२ को पावै।
गुर चलि गए भाग किछ परी३।
ठहिरे बहुर बाहनीमुरी ॥३॥
परी मार ऐसी किछ आइ।
नहीण संभाल भई किस थांइ।
दस हग़ार संग हुती सिपाह।
रहे हटाइ हटी किम नांहि४ ॥४॥
अबि तुरकनि की सैन चढावहु।
देहु दरब तूरन अनवावहु।
सभि गिरपति के सचिव सिधावैण।
गैल५ आपने लै करि आवैण ॥५॥
मानी भूप चंद हंडूरी।
भनी घमंड चंद भी रूरी६।
ततछिन दिज़ली सचिव पठाए।
मिले सु अवरंग के अुमराए ॥६॥
सकल ग़िकर तिन खोलि सुनायो।
दरब इतिक तुम निकट पठायो।
१लड़ाई करनी किवेण बी भली नहीण देखी गई। (अ) असां जंग करके (आपणा) भला कदे नहीण
डिज़ठा।
२किवेण बी नहीण।
३भाजड़ कुछ सिंघां ळ पई सी।
४(सिंघां अुते) मोड़ रहे पर मोड़ी नहीण।
५नाल।
६सुहणी (सलाह है)।