Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३५१

३८. ।लेपणी सिंघ ळ तमाचा॥
३७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>३९
दोहरा: प्राति सौच मज़जन करे, अलकार को धारि।
हीरे मुकता गोल जे, सोहति सेत अुदार ॥१॥
निशानी छंदु: +सेत धरैण दसतार सिर, जामा गर सेता१।
सेत दुकूल, सफूल सित२, कछ सेत समेता।
अुडगन महि पूरन ससी, जिम सेत सुहावै।
तिम बैठे विच सभा के, सेवक मन भावैण ॥२॥
भीत निकट इक सभा के, नित लेपहि सोई।
गुर आगै नहि लिपी सो, आए पहिलोई३।तअू प्रभू बैठे लिपति, जिह सिख की कारे४।
हुते समीपी अलप ही, सेवक परवारे ॥३॥
लीपहि हाथ संभारि कै, बहु शीघ्र करंता।
भई देरि अुर समुझि कै, गुर ते डरपंता।
पौणछोण हाथ बचाइ अुठ, पुन छीणट तुरंते।
गर जामा सित गुरू के, तहि परी पिखंते ॥४॥
श्री मुख ते ततकाल ही, इस भांति अुबाचा।
अुठहु लेपनी सिंघ कै, इक हतहु तमाचा।
सुनि आइसु को अुठे बहु, पहुचे अुतलाए।
हते तमाचे सभिनि हूं, तिस होश गवाए ॥५॥
भयो बिसुध देखो गुरू, मन बिखै बिचारा।
-तनक हुतो अपराध इस, सभि ने बहु मारा-।
खेद अधिक जुति जानि कै, पुन बाक बखाने।
सिख संगति सभि, गुरू की, आइसु कौ माने ॥६॥
तदपि सुनहु तुम सिंघ सभि! इह सिख गुर केरा।
केसन पर करतल हते, किय बुरा बडेरा५।

+इथोण सौ साखी दी १६वीण साखी चली है।
१गल विच चिज़टा जामा।
२चिज़टे फुलां वाला चिज़टा रेशमी कज़पड़ा ।दकूल = सं, अलसी, रेशम दा कज़पड़ा। सफूल सित =
चिज़टे फुज़लां वाला, भाव जिस दी अुणत विच ही चिज़टे फुज़लपै गए होण। (अ) सेत दुकूल = चिज़टा
दुपज़टा। सफूल सित = चिज़टे फुज़लां (दी माला) ॥।
३गुरू जी दे अज़गोण पहिले आके लिपणी सी सो लिपी नहीण गई सी।
४तां भी श्री गुरू जी दे बैठिआण ही लिपण लगा अुह सिख कि जिस दा इह कंम सी।
५हज़थ दी तली भाव तमाचे मारे, बड़ा बुरा कीता।

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