Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ३५२

५१. ।धीरमल दा अभिमान॥
५०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>५२
दोहरा: श्री हरिगोविंद निकटि है,
धीर मज़ल कर बंदि।
बंदन करि अरबिंद पद,
बैठो मान बिलद१ ॥१॥
चौपई: सतिगुर कहो कुशल सोण अहैण?पुरि करतार रहनि शुभ चहैण?
हाथ जोरि कर गिरा बखानी।
तुमरे पुरि की रज़छा ठानी ॥२॥
करि कै संधि शाहु कै संग।
रिस निवार करि राखो रंग।
सुनति कपट की बात बडेरी।
आछो करो* कहो तिस बेरी ॥३॥
डेरा करि तबि निसा बिताई।
हुतो फाग२ होरी नियराई।
नेरे पुरि ग्रामन को मेला।
आयो दरशन करनि सुहेला ॥४॥
गुर की कार कितिक ले आए।
ढिग ढिग को मेला समुदाए।
खेलति फाग३ संगतां सारी।
रंग, गुलाल, अंबीरनि४ डारी ॥५॥
गावहि शबद अनद बिलदै।
सतिगुर को सथान दर बंदै५।
श्री हरिगोविंद आगा दीनि।


१बड़े हंकार नाल।
*इह आछो वंग नाल किहा है।
२फगण।
३होली।
४रंग = घोलिआ होइआ रंग। गुलाल = संघाड़े, चावल आदि दे आटे नाल रंगिआ धड़ा।
अंबीर=खुशबूदार धूड़ा। किते गुलाल ळ बी कहि लैणदे हन, पर इह असल विच घसाए होए
चंदन दा धूड़ा गुलाल ते कसतूरी नाल बणिआ होइआ हुंदा है।
।अ: अबीर॥
५सतिगुर दे सथान दा दर बंद सी(किअुणकि)।

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