Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३५६
४६. ।अुज़च दे पीरान पीर॥
४५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>४७
दोहरा: पसरी सैना तुरक की, चहु दिशमहि पुरि ग्राम।
दस हग़ार पहुचो इते, गुर खोजनि के काम ॥१॥
सैया छंद: नबी नी ां तिस ही दल महि
गुर की तनक भनक१ सुनि कान।
खोजति पुरि महि इत अुत घर फिर
दुर दुर सभि ते चहति पछान।
आगे गुर ढिग रहे बहुत चिर
बेचे आनि महान किकान२।
कुछक चाकरी भी तबि कीनी
लीनि दरब को करि गुग़रान ॥२॥
सिमरन समैण करो३ सो मन महि
चाहो चित महि भलो बिचार।
-हम ते सरै सेव सतिगुर की
यां ते नीकी अपर न कार-।
सदन गुलाबे के तबि आए
सुनि श्री प्रभु ने लीए हकार।
दरशन ते अभिबंदन करि कै
बैठि गए ढिग कीनि अुचार ॥३॥
हम रावर के चाकर तिम ही
जिम आगे तुम करते कार४।
अबि जो अुचित होइ फुरमावहु
करहि सु हम नहि को तकरार५।
सुनि गुर भनोण रहहु ढिग हमरे,
गमनहि संग चलो हित धारि।
जबि हम खुशी देहि तबि हटीअहि,
कारज इही दिवस दो चार ॥४॥१थोड़ी जिही कंसो।
२घोड़े।
३सो समां याद कीता।
४आपदी सेवा जिवेण अज़गे करदे रहे सां।
५मुराद है कि किसे गज़लोण इनकार नहीण।