Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) ३६४

करहु शाहु प्रति हम चलि आइ ॥४४॥
सुनि अुमराव कहनि पुन लागा।
संग आप के बहु अनुरागा।
तअू शरीअनि ते डरपंति।
तुम दिशि आइ सकै न कदंत ॥४५॥
शर्हा पिता की करी सु माने।
अहैण सकेल१ सैणकरे साने।
अवरंग दै दै मान वधाए।
नित बैठति ढिग सो समुदाए ॥४६॥
यां ते आइ न, सुकचति रहै।
तअू दरस अविलोकनि चहै।
इज़तादिक बिनती बहु कीनि।
श्री प्रभु सिरेपाअु तिस दीनि ॥४७॥
रुखसद हुइ गमनोणततकाला।
करो शाहु सोण हरख बिसाला।
रहो प्रतीखति प्रभु को फेर।
-मिलि बोलौण गुर दरशन हेरि- ॥४८॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम ऐने दिज़ली प्रसंग बरनन नाम
चतुर चतवारिंसती अंसू ॥४४॥


१इकज़ठे कीते सु।

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