Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ३६४

४२. ।भगत बाणी चड़्हाई॥
४१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>४३
दोहरा: श्री अरजन अरग़िन१ सुनहि,
अरजुन२ जसु अुपजाइ।
समै दुपहिरी लगि गुरू,
बैठि ग्रिंथ लिखवाइ ॥१॥
चौपई: सुधा सरोवर पुन चलि आवहि।
करहि प्रदज़छन सीस निवावहि।
बैठहि जबहि संगतां ब्रिंद।दरसहि सतिगुर चंद मनिद ॥२॥
हरिमंदर महि हुइ दरबारे।
थिति मसंद अरदास अुचारेण।
आइ अुपाइन पाइन अरपहि।
सुर समुदाइ३ जाइ जिम हरि पहि४ ॥३॥
दया धारि दरशन को देति।
सिख देखति मन बाणछति लेति।
एक जाम तहि बैठि बितावहि।
पुन तंबू दिशि को चलि आवहि ॥४॥
राति दिवस बीतहि बिच डेरे।
शबद बनाइ लिखाइ घनेरे।
भगति विराग गान गुन सानी५।
नाना बिधिनि बनावहि बानी ॥५॥
इस प्रकार नितप्रति विवहारे।
कितिक दिवस सतिगुरू गुग़ारे।
लिखे शबद भगतनि के जबै।
कहि गुरदास बिसम अुर६ तबै ॥६॥
पंचोण पातिशाहि की गिरा।


१बेनतीआण।
२अुज़जल।
३सारे देवते।
४पास।
५मिली होई।
६असचरज चिज़त होके।

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