Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३६५
४७. ।करद भेट। नूरपुरीए सज़यद दी गवाही॥
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दोहरा: संधा होई आनि जबि, तबि अुमराव हकारि।
कहो बबरची को भले, खाना कीजहि तार ॥१॥
सैया छंद: पीरअहैण अुच बासी सज़यद
जुगत१ मुरीदन खाना खान।
सुधि को देहु तार जबि होवै
सुनिओ गयो आपने थान।
नाना बिधि के पाक बनायो
आमिख आदिक जेतिक जान।
तबि अुमराव पठो इक नर को
जाहु पीर ढिग लावन ठानि ॥२॥
ततछिन चलि सतिगुर ढिग आयो
हाथ जोर करि कही सुनाइ।
खाना खान पीर जी चलीअहि
करति हकारन थित अुमराइ।
सुनि श्री प्रभु बोले तिस नर सोण२
पीर नही खाने को खाइ।
रोग़े रहति हमेश इसी बिधि
एक समैण इक जौण मुख पाइ ॥३॥
जो मुरीद हैण संग हमारे
सो आवहि ए खाना खान।
सुन करि गयो जाइ करि भाखी
एव पीर ने कीनि बखान।
तीनहु सिंघन तबि कर जोरे
किम हम बचैण कौन क्रित ठानि?
आप अहो समरज़थ सभी बिधि
करैण तथा जस हुइ फुरमान ॥४॥
सतिगुर कहो न संसा कीजै
सज़तिनाम को बदन अलाइ।
१समेत।
२अुस आदमी ळ आखिआ कि(अुमराव ळ जाके आख कि)।