Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३८३

४९. ।माही ळ सुध लैं सरहिंद भेजंा। राइ कज़ल्हे दे धरम दी विथा॥
४८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>५०
दोहरा: आगे गमने सतिगुरू, अुलघे केतिक कोस।
जगरावाण पुरि कोट को, राइ हुतो बड होश१ ॥१॥
निशानी छंद: जनम तुरक हिंदू धरम, जिन धारन कीना।
दया धरम पुंनातमा, शुभ मग मन भीना।
सकल भेव गुरदेव को, सुनि सेव अुमाहा।
लै सैना संग तीन सै, चलि दरशन चाहा ॥२॥
आइ अगारी सो मिलो, अविलोके सामी।
नीले बसत्र प्रयंक पर, थिर अंतरजामी।
तजो तुरंगम दूर ही, पाइन सो आयो।
हाथ जोरि सनमुख गयो, बहु सीस निवायो ॥३॥
कदम पदम सम सुख सदन२, परसेकर दोअू।
बदन बिलोचन भाल पर, फिर फेरति सोअू।
आप साथ रण गाथ बड, हे नाथ! असंभै३।
तअू बिलोकि बहादरी, सभि तुरक अचंभै ॥४॥
करामात साहिब बडे, समरथ सभि भांती।
चहो बनावो छिनक महि, अनबन बनि जाती।
नर लीला कलि काल की, करि जग दिखरावो।
हरख शोक नहि बाप ही, तिल लेप न लावो ॥५॥
हम लोकन कौ दीखती, जबरी तुरकेशा।
करो बुरा तिन अपन सभि, तुम सोण रचि दैशा।
सुनि कै श्री मुख ते कहो, इम होवनहारी।
मिटति न कोट अुपाव ते, नर है कै नारी ॥६॥
माननीय सभि सीस पर, सुर असुरनि केरी।
नर बपुरे की कहां गति, जो फेरै हेरी४।


१राइकोट जगरावाण नगर (दा राइ) वज़डा दाना (आदमी) सी। मुराद इह है कि कज़ला गुरू जी
दा सिज़ख सी जो अज़गे जाके दज़संगे। ।देखो अंसू ५३ अंक ३-दास कदीमी रावर केरा॥। राइकोट
जगरावाण दी तसील विच है।
२कवलां वरगे चरन सुख दा घर।
३हे नाथ आप साथ (तुरकाण दे) रण दी गाथा बड़ी नामुनासब है, भाव तुरकाण ळ आप नाल लड़ना
नहीण सी चाहीदा।
४देखकेहटावे

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