Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४०५
४३. ।मेले दी रीति तोरनी, खज़त्रीआण ब्राहमणां गुरू जी ते पुकार करनी॥
४२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>४४
दोहरा: इक दिन पारो ने करी, गुर आगे अरदास।
प्रिथक प्रिथक सिख संगतां, आवति हैण तुम पास ॥१॥
चौपई: नहीण परसपर मिलिबो होइ।
भाअु प्रेम नहिण धारहि कोइ।
किह की किह सोण है न चिनारी।
दरस जाइण१ घर वारो वारी ॥२॥
आपस महिण जबि प्रापति मेला।
भाअु भगति बहु वधहि सुहेला२।
करिबे अुचित होइ अस बाती।
आवहि संगति अुर हरखाती ॥३॥
एक दिवस महिण मेलो होइ।
बहु देशनि पुरि संगति जोइ।
रावर की रजाइ बनि जै है।
दूरि दूरिके सिज़ख मिलै हैण ॥४॥
सुनि श्री अमर सु भए प्रसंन।
कहो बाक पारो तुम धंन।
परअुपकार बिचारन करैण।
सिज़ख अनेक मिलहिण निसतरैण ॥५॥
जो तुम चितवी मम चित सोए।
सगरे आवहिण दिवसबसोए३।
सभि सिज़खन को लिखहु पठावहु।
१दरशन करके जाणदे हन।
२सुखदाई।
३बसोए दा आम अरथ विसाखी लैणदे हन, पर कई थाईण (लहिणदे वल) इह पद बरसात लई
वरतीणदा है। रास ५ अंसू ३८ अंक १०, रासि ६ अंसू ५७ अंक २९ ते रासि १० अंसू ४ अंक ४
विच ते इथोण दीआण अगलीआण तुकाण दसदीआण हन कि भाई संतोख सिंघ जी इस ळ विसाखी लई
वरत रहे हन, पर अंक २७ विच जो दसिआ है कि मेले दी रीत टोरी ते प्रगट कीता कि इह
हुण सदा होवेगा। ते जो मेला हुण सदा गोइंदवाल विच हुंदा है, इस ळ तज़कीए तां मेला ते जज़ग
गोइंदवाल हुण तक बरसात विच अरथात भादरोण दे महीने पूरनमाशी ळ हुंदे हन। चाहे इस ळ
हुण गुरू पयाने नाल जोड़दे हन पर मेला जारी है, जज़ग हुण तक हुंदा है। इसे अंसू दे अंक २७
विच कवी जी बी हुइ अबि नीति कहिणदे हन, सो मुमकिन है कि एथे बसोए दा भाव बरसात
होवे, गरमी।