Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४२३

सभिनि प्रबीननि लीनसि चीना१ ॥६७॥
बंदति२ -लखी न जावहि लीला।
पारब्रहम श्री गुरू गहीला।
सिज़खन हित अचरज दिखरावति।
सदा प्रेम बसि इही जनावति- ॥६८॥
इति स्री गुरू प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे लवपुरि ते श्री रामदास
आगवन प्रसंग बरनन नामु चतर चज़तारिंसती अंसू ॥४४॥


१सिआणिआण ने समझ लिआ
२मज़था टेकदे हन (सोचदे होए कि गुरू दी)।

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