Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ४५१

६१. ।लोहे दे पिंजरे विच॥
६०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>६२
दोहरा: सभि की ातर जमा१ तबि, लोह पिंजरे पाइ।
गुरदिज़ता बेरी सहित, सेवहि जिम फुरमाइ ॥१॥
चौपई: करति भए अतिशै तकराई।
जमादार ढिग ठहिरयो आई।
निस महि बिसरामहि गुर पासी।
नरन जगावहि नीणद बिनासी ॥२॥
दिन पंचक महि सिख सो गयो।
गुरदिज़ते संग मेला भयो।
सतिगुर सुत की सुधि सभि भाखी।
मिलिबे को अबि मैण अभिलाखी ॥३॥
मात नानकी कहे संदेसे।
सगल कुटंब सचिंत विशेशे।
सो सभि चाहौण गुरनि सुनाई।
किम मिलिबो हुइ कहो अुपाई ॥४॥गुरदिज़ते सिज़ख साथ बखानी।
कहौण बहुर, गुर मरग़ी जानी।
वहिर कहूं ठहिरायहु नेरे।
संग सिपाही तिस को हेरे२ ॥५॥
गुर सेवा हित इत अुत फिरे।
पग बंधन युति सो सभि करे।
गुर समीप तबि अंतर गयो।
सिख आगवन सुनावति भयो ॥६॥
गुरू कहो तिस प्राति हकारहि।
सुनहि सकल सुधि, बहुर अुचारहि।
कहि दिहु तिस को करहु अरामू।
हुइ निशचिंत जपहु सतिनामू ॥७॥
कितिक समैण मैण बाहिर आयो।
गुर को कहिबो तांहि सुनायो।


१तसज़ली हो गई।
२सिपाही भाई गुरदिज़ते नाल वेखदा रहिदा है।

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