Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ५९

६.।बेगमात॥
५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>७
दोहरा: भयो दिवस पुनि सतिगुरू, शाहु बुलाए पास।
चढि तुरंग पहुचे तबहि, बैठे रुचिर अवास ॥१॥
चौपई: चंदन चौणकी चारु चकोनी।
सुजनी सेत छाद करि लोनी१।
तिस अूपर सनमान बिठाए।
बंदहि शाहु सहत समुदाए ॥२॥
संतन पीरनि अनिक प्रसंग।
कहे सुने हग़रत गुर संगि।
बचन बिलास हुलासति करे।
दहि दिसि रस बिसाल महि ढरे ॥३॥
पुन श्री हरि गोबिंद अुचारो।
गमन सुधासर हम चित धारो।
कितिक मास बीते इत आए।
पीछे सिख संगति अकुलाए ॥४॥
सुनति शाहु कहि मम अभिलाखा।
पुरि कशमीर चलोण चित राखा।
चलैण संग ही माझे देश।
दरस आप को होइ हमेश ॥५॥
आज महूरत को दिखरावौण।
नहीण बिलम तित तुरत सिधावौण।
सतिगुर बैठे तबहि बुलायो।
सोधि महूरत तांहि बतायो ॥६॥
त्रौदस वीरवार है परसोण।
करहु पयाना तबि दिन बर सो।
सुनो सभिनि कीनसि निज तारी।
जबि हग़रतनिशचै मति धारी ॥७॥
श्री सतिगुर डेरे चलि आए।
ब्रिध आदिक को कहि समुझाए।
सुनो सुधासर को जबि पाना।


१सुहणी

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