Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४८७
५२. ।माईदास वैशनो॥
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दोहरा: अति आचारी१ वैशनो, माई दास सु नाम।भगति करति श्री क्रिशन की, प्रेम सहत निशकाम ॥१॥
चौपई: संतनि की संगति नित करे।
क्रिशन क्रिशन मुखि महिण जपु धरे।
मोर मुकट पीतांबर धारी२।
इसी धान के मन आधारी ॥२॥
निस दिन सिमरहि अपर न काम।
मन की लिव चितवति घन शाम।
-कमल पज़त्र बिसतरति बिलोचन।
कुंडल गंडसथल३ दुख मोचन ॥३॥
मंद मंद सुंदर मुसकावनि।
भगतनि के चित चौणप बधावनि-।
ऐसो धान बिखै मन लागा।
सिमरहि नाम सदा अनुरागा ॥४॥
तिन श्री अमर महातम सुनो।
बहु गुर सिज़खन तिह सोण भनो।
चाहति दरशन को दिन बीते।
कबि कबि चलनि ठटहि४ निज चीते ॥५॥
समो पाइ गुर के पुरि आयो।
थिरो पौर पर पूछि पठायो५।
सुनि स्री अमर नेम निज भाखो।
जे मन तुव दरशन अभिलाखो ॥६॥
करहु देग ते भोजन जाइ।
होहि त्रिपत पुन हम ढिग आइ।
माई दास सुनति, संदेह६।
१करमकाणडी।
२सिर ते मुकट ते पीले बसत्र धारन वाला।
३वालेगज़ल्हां (ते लटक रहे)।
४संकलप करे।
५खड़ा हो के दरवाजे अगे पुछ भेजिआ।
६संसे विच हो गिआ।