Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ५२३
५९. ।कपूर देअु आदि सिज़खां प्रती अुपदेश॥
५८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>६०
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू, करति सुधासर बास।
संगति आवै दरस को, श्री गुर अरजन पास+ ॥१॥
चौपई: एक कपूर देअु सिख भारी।
सुतबनिता जुत सिज़खी धारी।
सेवा करि प्रसंन सिख करै।
बडो प्रेम मिलिबो जबि धरै++ ॥२॥
इक दिन श्री अरजन को पूछा।
सिख पारो तुमरो अुर सूछा।
तिन को दरशन मोहि करावहु।
इस थल अहै कि अपर बतावहु ॥३॥
श्री मुख ते फुरमावनि किय तिह।
संमन है शहिबाज पुरे महि।
सुनति कपूर देव तहि गयो।
संमण संग मेल तिन कियो ॥४॥
सेवा करि निज सदन अुतारा।
आप करनि लागो अस कारा।
ईणधन अधिक मोल को आना।
सफ शतरंजी१ तार सु ठाना ॥५॥
+जिन्हां नुसखिआण विच इह दोनोण अंसू कज़ठे हन अुन्हां विच इह दोहरा नहीण है, बाकीआण विच है।
++पा:-मिले सिज़ख तब प्रेम मन धरै।
गालबन अंबाले दे ग़िले वाले शहबाग़ पुरे तोण मतलब है।
१चिटाई, दरी।
दो लिखती नुसखिआण विच अंक ३, ४, ५ दी थावेण पाठ इअुण है:-
आयो श्री गुर अरजनु पासि। हाथ जोर कीनी अरदास।
श्री गुर तुमरे सिज़ख अनेक। जिन के हिरदे गान बिबेक ॥३॥
सज़तिनाम संग जिन लिवलाई। आप तरे बहु संग तराई।सदा नाम संग प्रीती जाणकी। इज़छा मन महि दरशन तांकी ॥४॥
बिखै बासना जिन्हो तिआगी। तुमरे चरननि की लिवलागी।
तिन को दरशन मोहि करावौ। इसथल है के अपर बतावौ ॥५॥
सुनि करि श्री गुर वाक अुचारा। चाहति तुम सिज़खनि हितु धारा।
जो मम पिआरे सिख हैण भाई। भांा मानो सभि सुख पाई ॥६॥
तिन को दरशन करीए जाइ। संमणु सिख सहिबाज पुर वाहि।
तिह ठां के जाकै दरशन करो। मिलो प्रेम ते शरधा धरो ॥७॥
सुन गुरवाक सरब बिधि जानि। बंदन करि गुर, कीनि पिआन।