Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ६६

७. ।बेगमात॥
६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>८
दोहरा: पीर१ प्रीखा परखिबे, जहांगीर कहि दीनि।
सभि बेगम मन भावती, जानि हरख बड कीनि ॥१॥
चौपई: को खोड़स बरखनि, को बीस।
किस बेगम की बैस पचीस।
करि शनान को प्रथम सरीर।
पहिरे रंगदार बर चीर ॥२॥
ग़ेवरजबर जवाहर जरे।
मुकता गोल, आब बड खरे२।
हीरनि को चामीकर चारू।
चमकति चौसरहार३ अुदारू ॥३॥
*जो रजपूत नरेश कुमारी४।
अधिक सरूपवती दुति सारी।
आणख पांखरी मनहु सरोजा५।
कट जिन छीनी पीन अुरोजा ॥४॥
बीच पजामनि अुरू जि मेले।
गोल स छीलक जनु जुग केले।
चलहि मराल चाल बर बाला।
सगरे सुंदर अंग बिसाला ॥५॥
अंजन जुति खंजन६ जनु नैन।
कंजन मद भंजन सर मैन७।
सभि जग बीन बीन जे आनी।
का सुंदरता करैण बखानी ॥६॥
प्रेरी चली शाहु की सोइ।
आस अुपमा कवि के मन होइ।

१गुरू जी दी।
२खरे पांी (चमक) दे।
३चअुलड़े हार।
*कवि जी दी शिंगार रसी शारदा हुण ग़ोर विच आई है।
४राज पुज़तरीआण।
५कवल दी।
६ममोला।
७कवल दे हंकार ळ तोड़न वाले कामदेव दे बाण हन।

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