Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ६७

८. ।पहाड़ीआण ते सूबिआण दी चड़्हाई॥
७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>९
दोहरा: भीम चंद सैलेणद्र कुपि, गिरपति लए हकारि।
पूरब आइ हंडूरीआण, निज सैना करि तार ॥१॥
चौपई: चढो घमंड चंद तहि आयो।
सो अनीकनी अपनी लायो।
बीर सिंघ जसुपाली आइ।
नालेगड़ीए मिलि समुदाइ ॥२॥
कुज़लू अरु कैणठल ठकुराई।
मंडसपती सैन चढि आई।
जंमू नूरपुरे ते धाए।
नगर हरीपुर चमूं बनाए ॥३॥
चंबिआल गन आइ मदूंी।
शाहुअनी ते चौणप सु दूंी१।
गालीएर श्री नगर मझारे।
चढि धाई सैना बल भारे ॥४॥
पुरि बिशहिर२ के सुभटि भटंत।
बिझड़ वालीए चड़े तुरंत।
चंदेशुर अरु घने दड़ोल।
मिलि डढवाली बंधि बंधि टोल ॥५॥
गूजर रंघड़ ब्रिंद गवार।
मिली चमूं अरु प्रजा पहार३।
दूर दूर लगि डेरे डारे।
गन सअूर पैदल बिसतारे ॥६॥
अुत दिज़ली ते लशकर चढो।
लरिबे हित अुतसाह जि बधो।
दुंदभि पुंज बजति जिस महीआ।
बरण बरण की धुज४ कर गहीआ ॥७॥
मजल करति मग अुलघति धाए।

१पातशाही फौज दे आअुण दे कारन इन्हां ळ दूंा चाअु चड़्हिआ है।
२जिसळ राम पुर बुशहिर कहिदे हन।
३पहाड़ दी प्रजा।
४झंडे।

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