Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५७५

अब रावरि की शरनी आयो।
संत प्रसंन सदाअुपकारी।
करहिण बुरे को भला बिचारी ॥६५॥
सुनि प्रभु ने करुना करि राखो।
इस ते बंस ब्रिधै तबि भाखो।
भई प्रसंन सु ग्रिह को गई।
करी अवज़गा सो बखशई ॥६६॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रिथम रासे गोणदे सुत प्रसंग बरनन
नाम एक शशटी अंसू ॥६१॥
विशेश टूक: श्री लहिंा जी जद देवी दरशनां ळ जाणदे होए श्री गुरू नानक देव जी
दे चरनां विच हाग़र होए तद आप ने देवी ळ गुरू जी दे दरबार
झाड़ू देणदिआण वेखिआ। इसे अंसू दे अंक १३ विच आप देवी ने
किहा है कि इहदी भगती दा फल इह हुंदा है कि भगत ळ सज़चे
गुरू दा मेल हो जाणदा है। हुण बी देवी गुरू के सेवक बज़लू जी ने जा
दिखाई है। इस तोण प्रगट है कि गुरू जी दे असथान ते जिस देवी
दे दरशन इसळ कराए गए सन, ओह गुरू जी दे डेरे ते झाड़ू देण
दी हैसीअत विच ही आई होणी है। जे कदी इशट रूप विच आई
हुंदी तद गुरू जी आप जाणदे आपणे नौकर ळ देवी दे दरशन
कराअुण ना भेजदे, नौकरळ भेजंा वी इह ही दज़सदा है कि इह
देवी सतिगुराण ते शरधा रखं वाली वकती है। गुरू जी अुज़चे हन।

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