Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ७४९. ।जंग अरंभ॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>१०
दोहरा: पुरि सिरंद ते चढि चलो,
लशकर बडो बटोरि।
खान वजीदा क्रोध कै,
गमनि अनदपरि ओर ॥१॥
चौपई: संग चार सै अरु पंचास१।
बजे नगारे धुनि बड तास।
इतने ही निशान फहिराइ।
निज निज मिसलनि अज़ग्र चलाइ ॥२॥
पैदल चलति तुंग संभारे।
तार तुरंगम पर असवारे।
तोपैण चली अनेक प्रकारी।
अुमडो दल जल सम बहु बारी२ ॥३॥
दुंदभि बजहि, पटहि, शरनाई।
रणसिंघे बाजहि समुदाई।
महां कुलाहल चालति होवा।
अुडी धूल नहि सूरज जोवा ॥४॥
कै घन घटा बिथरि करि चाली।
शसत्र दमंकति*छटा बिसाली।
बडो रौर भा मारग मांही।
कही बात सुनियति कुछ नांही ॥५॥
कै जल अुमडो बडो समुज़द्र।
बंधे टोल तरंग अछुज़द्र३*।
गन देशनि के आयुध धारी।
कहे शाह अुमडे इक वारी ॥६॥
जथा इंद्र की आगा पाइ।
नभमहि चले मेघ समुदाइ।


१४५० (नगारे)।
२समुंद्र दे जल वाण।
*पा:-शसतर दमकत।
३फौज दे टोले बंन्हे होए इक वज़डे तरंग हन। ।अ+कुशद्र=ना छोटे॥।
*पा:-अरछिज़द्र। आछंद्र।

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