Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 75 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ९०

सुनि घर गयो अनद महिण मगन।
कलीधर की लागी लगन१।
श्री सतिगुर पहि बिछुरो जब ते।
चढहि अखेर२ नाम करि तबि ते ॥१९॥
गमनहि वहिर जाइ अुदिआन।
दरसहि सतिगुर क्रिपा निधान।
जावद३ नहिण सरीर कहु तागो।
तावद इसी नेम महिण लागो ॥२०॥
वहिर अखेर ब्रिज़ति को जावै४।
कलीधर को दरशन पावै।
अवचल नगर* गए गुर जबै।
सज़चखंड प्रापति भे तबै ॥२१॥
मज़द्र देश५ महिण तिन ते पाछे।रहे जु सिंघ रहित महिण आछे६।
सो इन के दरशन कहु गए।
हाथ जोरि करि बंदहि भए ॥२२॥
रहे निकटि गुर सुजसु अुचारति।
अुर महिण परम प्रेम कहु धारति।
देखहु कहां चलित करि गए७।
रण महान घमसानन८ कए ॥२३॥
लाखहुण शज़त्रन कअु संघरि कै९।
पंथ खालसा अुतपति करि कै।
हति भे चारिहुण साहिबग़ादे।


१सिज़क।
२शिकार ळ।
३जद तक।
४शिकार करन ळ जावे।
*इह गुरू दसमेण पातशाह जी दा देहुरा ते सिज़खां दा निवास सथान है, दज़खं देश रिआसत
निग़ाम विच नांदेड़ शहिर दे लागे है।
५पंजाब। (अ) पुराण मूजब रावी ते जेहलम दे विचकारला देश।
६चंगे।
७भाव दसमेण गुरू जी।
८युज़ध।
९मार के।

Displaying Page 75 of 626 from Volume 1