Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ९०
११. ।राजे राम (रतन राइ दे पिता) ळ पुज़त्र दा वर॥
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दोहरा: श्री सतिगुरु नद ते अुतरि, आइ दमदमे थान।
धरमसाल सुंदर रची, मिले सिज़ख गन आनि ॥१॥
चौपई: जहि धोबनि को ब्रिज़छ टिकायहु।
एक ग्राम तौ तहां बसायहु।
अपर थान खंजर जो लहो।
अवनी बिखै गाड सो दयो ॥२॥
तहि इक ग्राम बसायो भारी।
खंजर तां को नाम अुचारी।
पातिशाहि की केतिक सैना।
तहां टिकावनि कीनि सुखैना ॥३॥हज़द करी दुइ राजनि केरी।
जिस ते अुठहि बिरोध न फेरी।
दुहि दिशि को करि हरख समेत।
आप आपने राज सुचेत ॥४॥
देश कामरू केर बरोबर।
अपर राज इक तहां हुतो बर।
राजा राम नरेशर नाम१।
पुज़त्र न अुपजो तिस के धाम ॥५॥
करि अुपचार हारि करि रहो।
किस बिधि ते नहि नदन लहो।
श्री गुर तेग बहादर पूरे।
इन को फैलो जसु बहु रूरे ॥६॥
केतिक बरख बिते इस थान२।
यां ते जसु तहि बिदत महान।
लघु दीरघ बहु करहि अुचारनि।
श्री गुर देति कामना सारन३ ॥७॥
हुइ सेवक जो सेवा करै।
१राजे दा नाम सी राम।
२तिस काम रूप देश विखे (श्री गुरू जी दे) कई वर्हे बितीत होए।
३पूरीआण कर दिंदे हन। (अ) सारिआण ळ.......।