Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ९५

किस प्रकार मुकती कहु लहेण- ॥६॥
करता पुरख बिचारन कीन।
जाने -कलि महिण जीव जि दीन१।
सज़तिनाम सिमरहिण सुख होइ।
इस बिन आन अुपाइ न कोइ ॥७॥
आप जाइ कर सुमति बतावौण।
परे कुमग२ ते सुमग चलावौण।
मो बिन सरै कार इहु नांही-।
यां ते नर तन धरि जग मांही ॥८॥
घर कालू के जनमे आई।
जननी त्रिपता पिखि हरखाई।
अलप बैस महिण सुंदर बेस३।
जहिण कहिण देति भए अुपदेश ॥९॥
सज़तिनाम को सिमरन करनो।
सनै सनै तन अहं४ बिसरनो।
भांा परमेशुर कहु जैसे।
हुइ प्रसंन अनुसारी तैसे ॥१०॥
इस प्रकार को दे अुपदेश।
अनिक नरनि के कटे कलेश।
मूले की तनुजा बडभागनि।
श्री गुर महिला५ महां सुहागनि६ ॥११॥
तिस ते पुज़त्र भए जुग७ धीर।
ब्रहगान महिण अचल गंभीर।जेठो८ भा श्री चंद अुदारा।
नहिण ग्रिहसत मग९ अंगीकारा ॥१२॥

१दुखी।
२बुरे राह।
३सुहणा रूप।
४हंकार।
५इसतरी।
६स्रेशट सुहाग वती।
७दो।
८बड़ा।
९ग्रिहसत मारग।

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