Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १०१

१३. ।फरिआद पुचाई॥
१२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>१४
दोहरा: पहुचति डेरे जतन किय, मुरी मोल मंगाइ।
दीरघ बेंू१ संग तिह, अूपर भले बंधाइ ॥१॥
चौपई: तिस के तरे मसाल बंधाई।
संग सनेह२ बिसाल* भिगाई।
बीती अरध राति जबि जानी।
अगनि लगाइ जगावनि ठानी ॥२॥
संग पठान पंच सै करे।
गमने शाहु महल के तरे।
करैण फिराद, फिराद पुकारी।
करतिरौर को चले अगारी ॥३॥
ऐरावती दिशा बड मंदिर।
शाहजहां सुपतो तिस अंदर।
दिन महि भेद पूछि सभि लीना।
तिसी सथान पयानो कीना ॥४॥
ऐरावती तीर हुइ खरे।
सो मसाल मुरी ढिग करे।
त्रास पाइ तबि चीकति अूची।
शाहु निकटि सो जाइ पहूंची ॥५॥
जोण जोण छेरति हुइ करि नेरे।
तोण तोण चीकति अूच बडेरे।
सभिनि फिराद, फिराद पुकारी।
इम रौरा कीनसि जबि भारी ॥६॥
अरु मसाल को भयो प्रकाशा।
जागी बेगम जनु लहि त्रासा।
शाहुजहां के सुपती संग।
सो भी जागो हालति अंग३ ॥७॥
कहि बेगम को है इस काल?

१अुज़चा बाणस, लमां वाणस।
२तेल।
*पा:-मसाल
३अंग (या सरीर) हिज़लंे कर।

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