Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) २२
२. ।सैदे खां जंग करन आइआ॥१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>३
दोहरा: +खान पान करि सुपति भे,
अरधि गई जबि राति।
सिज़ख थनेसर ते गयो,
कही पहुच के बात ॥१॥
चौपई: चौकीदार सिंघ जो खरे।
तिन के संग कहिन इम करे।
सैदे खां पठान चढि आवा।
डेरा जबहि थनेसर पावा ॥२॥
मैण तबि सुनी लरनि को चलो।
दल को इक नर भेती मिलो।
तबि ही तजि पुरि को मैण धायो।
बडे बेग ते इत लगि आयो ॥३॥
सुधि गुर को दिहु सकल सुनाई।
सवधानी बिधि करहि लराई।
मुल पठान सवा लख आवा।
महिद जंग को संग बनावा ॥४॥
पहुचहि आनि अनद पुरि काली१।
सुधि दैबे हित आइ अुताली।
तबि सतिगुर करि सौच शनाना।
बैठे आइ सु लगो दिवाना ॥५॥
अखिल खालसा जबि चलि आयो।
श्री कलीधर तबहि अलायो।
सैना सिंघनि की अबि सारी।
अहै पंच सै लेहु बिचारी ॥६॥
निज निज सदन ब्रिंद ही गए।
आइ सकहि नहि रण के भए२।
शज़त्र प्रबल सवा लख आयो।+इह सौ साखी दी २७वीण साखी है।
१कज़ल।
२जंग दे होण तज़क।