Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (रुति ६) १५३

१९. ।वैरी दी फौग़ दे बग़ार विचोण रसद लिआणदी॥
१८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>२०
दोहरा: अंन भयो थोरा जबै, छुधति रहति नर ब्रिंद।
चितवहि जतन अनेक ही, मिलहि सिंघ बलवंद ॥१॥
चौपई: केतिक सिंघ बिसाल जुझारे।
मिलि आपस महि मसलत धारे।
जहां बिलोकैण अंन महांना।
बिपनी१ आदि विखै सवधाना ॥२॥
आछी रीति जोहि सभि लीना।
आवन जानि घात सभि चीना।
तुरक शज़त्रगन हुइ जुति आलस।
तबि पहुचनि की ठानी लालस ॥३॥
होइ तुरंगनि पर असवार।
सनधबज़ध हुइ बल को धारि।
गए अचानक बडे बजारू*।
भए प्रवेशनि बीर जुझारू ॥४॥
शेर सिंघ जिन महि मुखि जोधा।
परे तुरक गन पर धरि क्रोधा२।
अरधनि कहो३ अुठावन कीजै।
अंन घ्रिज़त बहु सिता लईजै ॥५॥
इज़तादिक वथु भज़खन केरी।
लीजहि लूट धारि बिन देरी।
सभिहिन ते आगे हटि आवो।नहि शज़त्रनि महि बिलम लगावो ॥६॥
इम कहि परे धाइ करि सूरे।
विसतुनि सोण बग़ार जहि पूरे।
जिस दिशि चमूं शसत्र गन धारी।
तित दिश शेर सिंघ बल भारी ॥७॥
हलाहूल बोलति बिच बरे।

१दुकानां विच, बाग़ार विज़च।
*मुराद तुरकाण दे अंन दांे दे फौजी बग़ार तोण है देखो अंक १८।
२बहुते तुरकाण ते क्रोध करके जा पए (सिंघ)।
३अज़धिआण ळ आखिआ कि तुसीण.......।

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