Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) २०२
२६. ।पहाड़ीआण ने इटां पज़थरखग़ाना जाणके लुटे॥
२५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>२७
दोहरा: *कहो बहुत सतिगुर प्रभू, जननी आदि जि सिज़ख।
नहि मन लावति साच को, होइ जु बात भविज़ख१ ॥१॥
चौपई: श्री कलगीधर तबहि बिचारा।
इनहु दिखावहु करि पतिआरा२।
पंमा अपनि हग़ूर हकारो।
सभिनि सुनावति तिसै अुचारो ॥२॥
अवरंगा अरु गिरपति सारे।
सहत समाज जि चहति निकारे।
पंच हग़ार ब्रिखभ बनजारे।
भेज देहु हम कोश निकारेण ॥३॥
प्रथम हमारी दौलत जावै।
तिस पशचाती निकरि सिधावैण।
अपर समाज साथ हम राखैण।
जंगल देश जानि अभिलाखैण ॥४॥
इम सुनि पंमा बाहर गयो।
गिरपति साथ कहति बिध भयो।
सुनि कै हरखे सभि ही मानी।
अुमरावन भी नीके जानी ॥५॥
नित को रण मुहिंम मिट जाइ।
आपो अपने सदन सिधाइ।
लशकर बिखै ब्रिखभ बनजारे।
करे बटोरन ततछिन सारे ॥६॥
ब्रिखभ गोन जुति३ पंज हग़ार।
भेज दीए सतिगुर दरबार।
आनि थिरे ढिग प्रभु पुन कहो।धरम इमान दुहन जिम लहो४ ॥७॥
*सौ साखी दी इह १९वीण साखी है।
१जे भविज़खत विच होणी है अुह मन नहीण लिआणवदे सिज़ख ते माता जी।
२अग़मायश करके दज़सीए। (अ) इन्हां ळ दिखा देईए तां भरोसा करनगे।
३छज़टां समेत।
४(पहाड़ीआण ने) धरम (तुरकाण ने) ईमान जिवेण दोहां ने (विच लिआअुणा) लखाइआ है।