Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ३८२५१. ।देगचे विचोण सूर॥
५०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>५२
दोहरा: बीते केतिक दिवस जबि,
काराग्रिह के मांहि।
सरब रीति ते कठनता,
करहि तुरक बदराहि ॥१॥
चौपई: पुनहि मुलाने काजी और।
मिलि मसलत कीनसि इक ठौर।
हिंदुनि गुरू गहो दिढ शाहू।
करो कैद बहु संकट मांहू ॥२॥
कितने दिवस* सु बीत गए हैण।
ताड़न अनिक प्रकार किए है।
रंचक हठ नहि तागनि कीनसि।
बधो१ प्रथम ते दिढता लीनसि ॥३॥
अनिक अुपाइ किए बहु रोका।
इक सम मुख तिन को अवलोका।
नहीण त्रास ते देखो दीन२।
बदन प्रकाश प्रसंनता लीनि ॥४॥
नहीण शर्हा महि आवनि मानहि।
कहो शाह को रिदै न आनहि।
अपनि आप को लखहि बडेरा।
करहि तरक तुरकन मत जेरा३ ॥५॥अबि चलि पातशाहु समुझावहु।
अपनो खाना तिसे ुवावहु।
अस मसलत करि गमने सोइ।
कुचल शरा के बंदे जोइ ॥६॥
साथ अदाइब कुरनश४ करिकै।
बारि बारि तसलीम सु धरि कै।


*पा:-संमत।
१(हठ) वधिआ।
२मुरझाइआ चिहरा नहीण देखिआ कदी बी।
३तुरकाण दे मत ळ नीवाण (दज़स के) तरकाण करदा है।
४सलाम।

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